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22 जनवरी, 2014

'आप' के विरोध के असल कारण ढूंढिए



कितना सच?पहले लड़े थे गोरों से,अ़ब लड़ेंगे चोरों से 

अब तक पचास लाख सदस्यों और लोकसभाई छब्बीस सौ  उम्मीदवार आवेदकों वाली  'आप' को सोचना ही होगा कि एक साथ इतनी तरह की शक्तियां और विचारधाराएं  उस पर क्यों टूट पड़ी हैं?
       
कांगेस के गृहमंत्री जो देश की राजधानी में निरंतर बलात्कार, वसूली,उगाही रोकने में अक्षम हो उनकी  नजर में केजरीवाल मराठी शब्द 'एरा' यानी सनकी,पागल मुख्यमंत्री हैं; हिंदू आतंकवाद और साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद की कर्त्री  भाजपा  की नजर में वे नक्सली हैं; भूतपूर्व कांग्रेसी और वर्तमान पवारपंथी रांकपाई देवी प्रसाद त्रिपाठी जिनके आलाकमान के राज्य महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या का ग्राफ सबसे ऊंचा है, उनके लिए केजरीवाल कालनेमी,राक्षस,बहरूपिया हैं; मल- निर्मल बाबा,फर्जी ब्रा, भूत प्रेत,अंगूठी,पत्थर,सेक्स,सनसनी,वारदात  बेचनेवाले  मीडिया समूह की नजर में वे अराजक, परेशानी पैदा करनेवाले नेता  और हाई वोल्टेज ड्रामेबाज हैं तथा देश मे मल्टीनेशनल पूँजी के समर्थक और मध्यवर्ग के सतही लेखक चेतन भगत के लिए वे राजनीति की आइटम गर्ल हो गए हैं.
           गौरतब है कि गांधीवादी अन्ना आंदोलन से उपजे और धरना अनशन के उस्ताद अरविन्द केजरीवाल एकाएक नक्सली,आतंकवादी और सनकी कैसे हो गए.इसका मतलब है कि पारंपरिक  राजनीतिक ताकतें गांधीवाद को नक्सलवाद और पागलपंथ मानती हैं; कानूनी दांवपेच को न्याय और लोकतंत्र कहती हैं तथा साम्प्रदायिक आतंकवाद को राष्ट्रवाद और गणतंत्र समझती हैं. क्या  संघीय ढाँचे के पास 'राज्य' की स्वायत्ता के लिए कोई संवेदनशीलता है चाहे पूर्वोत्तर हो,जम्मू काश्मीर हो या राजधानी दिल्ली?
        . मीडिया के  तत्कालीन विरोध के प्रमुख कारण भाजपा व कांग्रेस से पेड समझौते,आप की मुखरता, विदेशी निवेश का दिल्ली के खुदरा क्षेत्र मे रोक,गणतंत्र विज्ञापन रोजगार और देश भक्ति की मौसमी दूकानदारी मे खलल,दिल्ली के दफ्तरों मे आम आदमी द्वारा स्टिंग आपरेशन तथा मीडिया आभासी एक्टिविज्म इगो को वास्तविक एक्टिविज्म से चुनौती देना हैं.मीडिया घराने में  एफडीआई पूँजी की अभी काफी जरूरत है तथा वह उत्पाद कारपोरेट की शेयर विज्ञापन संधि से चलने लगी है. ऐसे हालात मे पर्व त्योहार की बिक्री पर बुरे असर को वह बर्दाश्त नहीं कर सकता .आंदोलन के वक्त आखिर पेप्सी  के  बैकग्राउंड
में वह देशभक्ति का विजुअल कैसे बेच सकता है?
                  दरअसल आप के लिए जहाँ एक ओर आंदोलन से मिली सत्ता की कुर्सी ने अन्य पुरानी सत्ताधारी ताकतों के हाथ में विरोध का हथियार थमा दिया है वहीँ अपनी राजनीतिक रणनीति की चूक, अदूरदर्शिता और पार्टी के आंतरिक अंतर्विरोध ने इस संकट को और तीखा कर दिया है.
          आप को फिलहाल लोकसभा चुनाव तक दिल्ली के जन विकास और राष्ट्रीय राजनीति पर केंद्रित होना चाहिए. यदि आप राजनीतिक विचारधारा,संगठन,कार्यक्रम और राष्ट्रीय जरूरतों के हिसाब से चलने मे विफल होती है तो दिल्ली के उपभोक्ता वोटरों से वह लंबी पाली नहीं खेल सकती.
          कुछ प्रयोग और सिद्धांत त्यागी वाम विचारकों ने जिनमे एनजीओ समर्थक और विरोधी दोनों हैं,ने आप को संसदीय संकट का 'सेफ्टी वाल्व' कहकर विरोध किया है. दरअसल मैं ढाई दशक से वाम की एक क्रोनिक बीमारी को निकट से देख रहा हूँ कि 'न खेलब न खेले देव,खेलिए बिगारब'. वह ज्यों ज्यों जन सरोकार,विचारधारा, नए यथार्थ से निबटने मे चूक रही है उसका सोच व विक्षोभ स्तर बिखर रहा है.दरअसल देश के एक्टिविस्टों,आंदोलनकारियों,निराश समाजवादियों,वामपंथियों, आजादखयाल युवाओं के गुस्से,पस्ती और नए पुराने ख्वाब को आप ने अपने प्रयोग से पंख दे दिए हैं. भले ही पूंजीवाद के सूरज पंखों को झुलसा दे लेकिन कुछ देर की मानसिक राहत इस उड़ान मे है. इस तथ्य ने दक्षिणपंथ  को ज्यादा और वाम को कम लेकिन परेशान तो कर ही दिया है.
           विपक्ष के हमलों में एक चीज और विचारणीय है.जो पार्टियां संसदीय आप को  एनजीओग्रस्त और अमेरिकापरस्त बता रहीं हैं उनके संसदीय स्वरूप में एफडीआई,धर्म,जाति,भ्रष्टाचार,काला धन, पूँजी संकेंद्रण,असंतुलित आर्थिक गैर बराबरी,जल,जंगल,जमीन,रोजगार,मंहगाई,सामाजिक सुरक्षा को लेकर कोई
ईमानदार जन सरोकारी सोच नहीं है.यह मत भूलना चाहिए कि हमारी संसद ही अन्य चीजों की तरह एनजीओ अनुमति कानून देती है तथा अपने पक्ष में उसका बहुआयामी इस्तेमाल करती है. हमें सोचना होगा कि राष्ट्र और जनता के हित में कौन सी चीज कितनी खतरनाक है और वास्तविक लोकतंत्र के लिए इनका हल क्या होगा.राजनीति के नए तौर तरीकों,मुहावरों,प्रयोगों से परेशान विपक्ष को अपने गिरेबान में झाँकने से जो आक्रोश और खीझ होती है उसका प्रतिवाद एनजीओ और अमेरिकापरस्ती में दीखता है.
       संसदीय व्यवस्था में एक जनविरोधी पाखंड पार्टियों के नाम में देखिए. कांग्रेस पार्टी स्वतंत्रता संग्राम का प्लेटफार्म थी जिसमें आजादी का कोई मूल्य नहीं है; भारतीय जनता पार्टी में जनता हिंदू समुदाय का पर्याय है; समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल में समाजवादी व जनता का अर्थ यादव-मुसलमान फेक्टर है; बहुजन समाज पार्टी में बहुजन सिर्फ दलित समुदाय है; वामपंथी पार्टी का अर्थ संसद की कुर्सियों को गलियाना और बैठने के लिए दिवास्वप्न देखना है. आप की एक बड़ी ढुलमुल सीमा है कि आम आदमी पार्टी में आम आदमी शहरी झुग्गी से लेकर अंबानी तक है. किसान,मजदूर,दलित,आदिवासी अभी उसकी पहुँच से बाहर हैं. जाति,धर्म,भ्रष्टाचार से लबालब पार्टियों को आम आदमी जैसे निरपेक्ष शब्द से अपनी वोट की राजनीति में परेशानी हो रही है.
       अभी आप के विरोध की चौतरफा बयार बहनी बाकी है. उम्मीदवार सूची की घोषणा के बाद यदि पद लोलुपता पर इसकी विचारधारा भारी नहीं हुई तो यह पार्टी बिखर जायेगी और जनता इसे त्याग देगी.यदि  यह
आंतरिक कलह से उबर गई तब दूसरी चुनौती बीजेपी-कांग्रेस और क्षेत्रीय पार्टियों से है. एक चुनौती इसे मीडिया देगा जब तक यह कारपोरेट पूँजीवाद का पूर्ण समर्थक न हो जाए. बस उसी दिन यह एक बुर्जुआ और
जनता की गद्दार पार्टी होगी. हो सकता है तब यह उपभोक्ता नागरिक समाज की हवा तेज करे लेकिन भारत जैसे गैरबराबरी वाले देश में यह प्रयोग असफल रहेगा.इसलिए कि आप से बूढ़े बहुराष्ट्रीय अर्थशास्त्र के केन्द्र का चंद्रमा बहुत दूर रहेगा. फिलहाल तो अरविंद केजरीवाल की इस हिमाकत में दम है कि हाँ मैं अराजकतावादी हूँ.

छोटे छोटे फैसलों से  उपभोक्ता समाज को संतुष्ट करने की कोशिश क्या टिकाऊ राजनीति दे पाएगी?





1 टिप्पणी:

कमल कुमार सिंह (नारद ) ने कहा…

मोहब्बत की जब तुमसे खुदा कहा हमें , बेवफा न कहो हमे, भले हम गलीज हो जाए ..... निहितार्थ ...... इससे छोटा निष्कर्ष हम नहीं निकाल सकते थे .