गांव में अब भी हवा मिठाई या रुइया मिठाई बेचनेवाला आता है. साइकिल के चौरे करियर,मजबूत टायर,झोलेनुमा तीन चार खाली लटकन बोरे,दायें बाएं कंधे पर कुछ छोटे छोटे झोले. एक ढक्कनदार टिनहा कनस्तर में आकार में भंडार और भार में सेर सवा सेर की बेकरार हवा मिठाई. उसके एक हाथ में टुनटुनिया घंटी जिसके लगातार टन टन का लुभावन स्वादिष्ट स्वर बच्चों को घर,खेत,मैदान,सड़क,स्कूल से चुंबक की तरह खींच लेता है.
वह कागज के टुकड़े पर चुटकी भर मिठाई देता और बदले में बच्चे घरों से मक्का,गेंहू,धान,आलू,धनिया,सरसों,चना,मटर,लोहा लक्कड,शीशी-बोतल,चप्पल-जूते लाकर उसके बोरे झोले भरते जाते. हवा मिठाई वाले की पूरी साइकिल लदकर चरमराने लगती,कंधे अकड़ने लगते लेकिन मिठाई आधी बची ही रहती.सारे मोहल्ले का घर खाली,पेट खाली लेकिन जीभ संतुष्ट.
स्वाद में हवा,जुबान पर हवा, दौरी भर अनाज हवा,पेट में हवा,स्वप्न में हवा.वाह रे हवा मिठाई,तेरा कोई जवाब नहीं.हवा मिठाई वाले की एक समझ होती है-पक्का बेचना है,कच्चा लेना है.मजाल क्या कि आप सिक्के या नोट से चुटकी भर हवा मिठाई पा लें.
कारपोरेट बहुराष्ट्रीय बाजार हवा मिठाईवाला है.वह कच्चा लेता है और बदले में पक्का देता है. भारी लेता है और हल्का देता है.पोस्को हो या वेदांता;मोंसेंतो हो या पेप्सी;उन्हें केवल कच्चा चाहिए और पक्का पाइए. इस देश के जंगल,खेत,खनिज,पानी,नदी,जड़ी बूटी,अंतरिक्ष सब देकर उनके बदले टेलीविजन,मोबाइल,स्मार्ट फोन, टेबलेट, सोडा,ड्रिंक,क्रीम,पाउडर लीजिए.
हम ऐसी दुनिया के निवासी हैं जहाँ हमारे जीने के ठोस सामान प्रेम से,बन्दूक की नोंक से,मर्जी से,बेमर्जी से दिनरात ढोए जा रहे हैं और हमें जो मिल रहा है वह हमारे लिए कूड़े की सभ्यता बना रहा है.
दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है और स्विट्जरलेंड सबसे तंदुरुस्त.
इसका मतलब हुआ कि हमारे देश के फेफड़े में सबसे ज्यादा खराब हवा है,धमनी में सबसे गंदा रक्त है.
इसका एक मतलब यह भी हुआ कि जो कच्चा लुटाता है वह बीमार होता जाता है और जहाँ कच्चे पक्के की स्याह कमाई जमा होती वहाँ की हवा सफ़ेद संजीवनी से भरी रहती है.
आखिर हम पक्का लेने और कच्चा देने की कीमत कबतक चुकायेंगे?
क्या पीलिया से शिकार बदन को विक्को टर्मरिक क्रीम स्वस्थ कर पायेगा?
क्या मार्क्स को नोमार्क्स क्रीम दागमुक्त चेहरा दे सकता है?
वह कागज के टुकड़े पर चुटकी भर मिठाई देता और बदले में बच्चे घरों से मक्का,गेंहू,धान,आलू,धनिया,सरसों,चना,मटर,लोहा लक्कड,शीशी-बोतल,चप्पल-जूते लाकर उसके बोरे झोले भरते जाते. हवा मिठाई वाले की पूरी साइकिल लदकर चरमराने लगती,कंधे अकड़ने लगते लेकिन मिठाई आधी बची ही रहती.सारे मोहल्ले का घर खाली,पेट खाली लेकिन जीभ संतुष्ट.
स्वाद में हवा,जुबान पर हवा, दौरी भर अनाज हवा,पेट में हवा,स्वप्न में हवा.वाह रे हवा मिठाई,तेरा कोई जवाब नहीं.हवा मिठाई वाले की एक समझ होती है-पक्का बेचना है,कच्चा लेना है.मजाल क्या कि आप सिक्के या नोट से चुटकी भर हवा मिठाई पा लें.
कारपोरेट बहुराष्ट्रीय बाजार हवा मिठाईवाला है.वह कच्चा लेता है और बदले में पक्का देता है. भारी लेता है और हल्का देता है.पोस्को हो या वेदांता;मोंसेंतो हो या पेप्सी;उन्हें केवल कच्चा चाहिए और पक्का पाइए. इस देश के जंगल,खेत,खनिज,पानी,नदी,जड़ी बूटी,अंतरिक्ष सब देकर उनके बदले टेलीविजन,मोबाइल,स्मार्ट फोन, टेबलेट, सोडा,ड्रिंक,क्रीम,पाउडर लीजिए.
हम ऐसी दुनिया के निवासी हैं जहाँ हमारे जीने के ठोस सामान प्रेम से,बन्दूक की नोंक से,मर्जी से,बेमर्जी से दिनरात ढोए जा रहे हैं और हमें जो मिल रहा है वह हमारे लिए कूड़े की सभ्यता बना रहा है.
दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है और स्विट्जरलेंड सबसे तंदुरुस्त.
इसका मतलब हुआ कि हमारे देश के फेफड़े में सबसे ज्यादा खराब हवा है,धमनी में सबसे गंदा रक्त है.
इसका एक मतलब यह भी हुआ कि जो कच्चा लुटाता है वह बीमार होता जाता है और जहाँ कच्चे पक्के की स्याह कमाई जमा होती वहाँ की हवा सफ़ेद संजीवनी से भरी रहती है.
आखिर हम पक्का लेने और कच्चा देने की कीमत कबतक चुकायेंगे?
क्या पीलिया से शिकार बदन को विक्को टर्मरिक क्रीम स्वस्थ कर पायेगा?
क्या मार्क्स को नोमार्क्स क्रीम दागमुक्त चेहरा दे सकता है?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें