चबूतरे पर संवाद जारी: "पहले सत्य फिर आत्मरक्षा"
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पाठक मित्रो!
मालवीय चबूतरे ने एक दिन पहले ही 'गुरुदेव' रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'महात्मा' को याद किया है।कल सत्य ,अहिंसा और सभ्यता के समीक्षक महात्मा गांधी की जयंती है।गांधी ने हमें सत्याग्रह की महान शिक्षा दी थी।यह अनायास नहीं है कि बीएचयू के कुलगीत को वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर ने सर्वप्रथम न केवल उर्दू में लिखा बल्कि 'पहले सत्य फिर आत्मरक्षा' का गांधीवादी पाठ पढ़ाया।। आजकल चारों ओर झूठ और आत्मरक्षा का बोलबाला है।झूठ ताल ठोंक कर सत्य का पहरेदार होने का दावा कर रहा है,स्वार्थ अपनी कुर्सी,पद,पदोन्नति,यश,सुविधा और भोग के लिए करुणा का गला घोंट रहा है,अँधेरा डिटर्जेंट का विज्ञापन
करते हुए उजाला उजाला चिल्ला रहा है।
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पाठक मित्रो!
मालवीय चबूतरे ने एक दिन पहले ही 'गुरुदेव' रवीन्द्रनाथ टैगोर के 'महात्मा' को याद किया है।कल सत्य ,अहिंसा और सभ्यता के समीक्षक महात्मा गांधी की जयंती है।गांधी ने हमें सत्याग्रह की महान शिक्षा दी थी।यह अनायास नहीं है कि बीएचयू के कुलगीत को वैज्ञानिक शांति स्वरूप भटनागर ने सर्वप्रथम न केवल उर्दू में लिखा बल्कि 'पहले सत्य फिर आत्मरक्षा' का गांधीवादी पाठ पढ़ाया।। आजकल चारों ओर झूठ और आत्मरक्षा का बोलबाला है।झूठ ताल ठोंक कर सत्य का पहरेदार होने का दावा कर रहा है,स्वार्थ अपनी कुर्सी,पद,पदोन्नति,यश,सुविधा और भोग के लिए करुणा का गला घोंट रहा है,अँधेरा डिटर्जेंट का विज्ञापन
करते हुए उजाला उजाला चिल्ला रहा है।
आजकल सत्य को प्रायोजित और झूठ को सत्यापित बताया जा रहा है।विचार धुंध का शिकार है।ज्ञान ने कायरता का कोट पहन लिया है।सिर्फ तालों और फाटकों में बंद आवाज़ें हैं जो खुले आकाश और बहती हवाओं में फैलना चाहती हैं।वे आवाज़ें हरे पत्तोंवाली टहनियां और नीले
पंखों वाली चिड़ियाँ होकर 'फ्री विल' को विस्तार देना चाहती हैं।
आज इतवार है।लेकिन मालवीय चबूतरा पहले की तरह गुलजार नहीं।अधिकांश विद्यार्थी दुर्गा को पूजने और रावण को जलाने अपने घर जा चुके हैं।चाय दूकानदार ने बिक्री का रोना रोते हुए चूल्हा ठंडा कर लिया है।बाहरी तत्वों का भी कम ही भीतर आना हुआ है।सिर्फ नगर के व्यापारियों और प्रायवेट अस्पतालों के सैकडों बाहरी कर्मचारियों ने मालवीय बगिया की भरपूर ऑक्सीजन पी और घर से लाये हुए चाय का वीटी भोज किया।
मैं जब पहुंचा तो नगर के सेवानिवृत शिक्षकों और कैम्पस के सेवामुखी शिक्षकों का टोटा था।मोबाइल लगाया तो प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल का मोबाइल नॉट रिचेबल था।गांधीवादी डा दीनबंधु तिवारी ने पहले ही गांधी चर्चा से मना कर दिया था।बूढ़े वाचस्पति बेटे के साथ कुल्लू की कूल कूल फ़िज़ा का आनंद ले रहे हैं।सेवामुक्त बंबइया प्रो सत्यदेव त्रिपाठी ने सत्य का इज़हार किया कि सर्दी जुकाम और गाँव ने जकड़ लिया है।गतिशील प्रो वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी कहीं नारायण यात्रा पर होंगे और प्रगतिशील प्रोफ़ेसर लोग लेट से सोकर उठते हैं।एक दो शोधार्थी दिखे और एक दो जासूस जो कुछ और ही मूल्य की खोज में होंगे।
इस बीच अनेक तरह की
मनोयात्राओं से गुज़र रहा था कि प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल आधे घन्टे लेट से प्रकट भए।...फिर शुरू हुआ इतवारी चबूतरा संवाद...
...एक शिक्षक होने के नाते हम दोनों ने शिक्षा और परिवेश से जुडी ढेर सारी घटनाओं को शेयर किया।हम दोनों इस बात पर सहमत थे कि मालवीय चबूतरा 'पहले सत्य फिर आत्मरक्षा' के प्रेरक गांधी और मालवीय के विचार को ज़िंदा रखेगा।
एक शिक्षक का प्रथम कार्य ज्ञान उत्पादन और छात्र हित के बारे में सोचना है।हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण किसी एकलव्य का प्रश्न है उतना ही अहम किसी गार्गी का सवाल।शिक्षक किसी खूंटे में बंधा बैल या थाने का सिपाही नहीं जो लाठी की भाषा बोलने के लिए मजबूर हो।किसी भी शिक्षा संस्थान का एक शिक्षक और छात्र से ज्यादा बड़ा शुभचिंतक कोई नहीं हो सकता।
कभी कभी सत्ता से चाटूकारिता और अनैतिक लाभ के लिए कुछ शिक्षक पथभ्रष्ट होते रहे हैं जिसकी परम्परा द्रोणाचार्य से आजतक जारी है।ऐसे शिक्षक सुकरात याज्ञवल्क्य बुद्ध और मालवीय की परम्परा के विरुद्ध शिक्षा के चेहरे पर कलंक की तरह हैं।वे वेतनजीवी हो सकते हैं बुद्धिजीवी नहीं।
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पंखों वाली चिड़ियाँ होकर 'फ्री विल' को विस्तार देना चाहती हैं।
आज इतवार है।लेकिन मालवीय चबूतरा पहले की तरह गुलजार नहीं।अधिकांश विद्यार्थी दुर्गा को पूजने और रावण को जलाने अपने घर जा चुके हैं।चाय दूकानदार ने बिक्री का रोना रोते हुए चूल्हा ठंडा कर लिया है।बाहरी तत्वों का भी कम ही भीतर आना हुआ है।सिर्फ नगर के व्यापारियों और प्रायवेट अस्पतालों के सैकडों बाहरी कर्मचारियों ने मालवीय बगिया की भरपूर ऑक्सीजन पी और घर से लाये हुए चाय का वीटी भोज किया।
मैं जब पहुंचा तो नगर के सेवानिवृत शिक्षकों और कैम्पस के सेवामुखी शिक्षकों का टोटा था।मोबाइल लगाया तो प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल का मोबाइल नॉट रिचेबल था।गांधीवादी डा दीनबंधु तिवारी ने पहले ही गांधी चर्चा से मना कर दिया था।बूढ़े वाचस्पति बेटे के साथ कुल्लू की कूल कूल फ़िज़ा का आनंद ले रहे हैं।सेवामुक्त बंबइया प्रो सत्यदेव त्रिपाठी ने सत्य का इज़हार किया कि सर्दी जुकाम और गाँव ने जकड़ लिया है।गतिशील प्रो वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी कहीं नारायण यात्रा पर होंगे और प्रगतिशील प्रोफ़ेसर लोग लेट से सोकर उठते हैं।एक दो शोधार्थी दिखे और एक दो जासूस जो कुछ और ही मूल्य की खोज में होंगे।
इस बीच अनेक तरह की
मनोयात्राओं से गुज़र रहा था कि प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल आधे घन्टे लेट से प्रकट भए।...फिर शुरू हुआ इतवारी चबूतरा संवाद...
...एक शिक्षक होने के नाते हम दोनों ने शिक्षा और परिवेश से जुडी ढेर सारी घटनाओं को शेयर किया।हम दोनों इस बात पर सहमत थे कि मालवीय चबूतरा 'पहले सत्य फिर आत्मरक्षा' के प्रेरक गांधी और मालवीय के विचार को ज़िंदा रखेगा।
एक शिक्षक का प्रथम कार्य ज्ञान उत्पादन और छात्र हित के बारे में सोचना है।हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण किसी एकलव्य का प्रश्न है उतना ही अहम किसी गार्गी का सवाल।शिक्षक किसी खूंटे में बंधा बैल या थाने का सिपाही नहीं जो लाठी की भाषा बोलने के लिए मजबूर हो।किसी भी शिक्षा संस्थान का एक शिक्षक और छात्र से ज्यादा बड़ा शुभचिंतक कोई नहीं हो सकता।
कभी कभी सत्ता से चाटूकारिता और अनैतिक लाभ के लिए कुछ शिक्षक पथभ्रष्ट होते रहे हैं जिसकी परम्परा द्रोणाचार्य से आजतक जारी है।ऐसे शिक्षक सुकरात याज्ञवल्क्य बुद्ध और मालवीय की परम्परा के विरुद्ध शिक्षा के चेहरे पर कलंक की तरह हैं।वे वेतनजीवी हो सकते हैं बुद्धिजीवी नहीं।
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पाठक मित्रो!
पिछले सप्ताह दो दुःखद घटनाएं कैम्पस में घटी।पहली यह कि एक छात्रा के साथ छेड़खानी हुई।दूसरी यह कि कैम्पस में जेंडर भेदभाव के प्रश्न पर जब छात्राएं 22 और 23 सितम्बर को गांधीवादी तरीके से विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष सत्याग्रह कर रही थीं, जो उनका लोकतांत्रिक अधिकार है,तब 23 की आधी रात को जिस तरह से प्रशासन ने उनपर लाठीचार्ज किया वह बेहद गैरमानवीय,गैरलोकतंत्रिक और मालवीयजी की 'मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्व विद्या की राजधानी' के संस्थानिक मूल्य के विपरीत है। लोकतंत्र और मानवाधिकार विरोधी इस अमानवीय कार्य पर मालवीय चबूतरे ने 24 को अपनी असहमति जताई और न्याय व सुविधा संसाधन का आग्रह भी किया।
एक शिक्षक का बुनियादी धर्म है कि वे कक्षा में दिए जाने वाले ज्ञान के अनुरूप आचरण करे।सा विद्या या विमुक्तये।विद्या स्वयं और अन्य दोनों की पूर्ण मुक्ति का नाम है।आजकल यह तोतारटंत है।सत्य न्याय और ज्ञान की पूर्णता और पक्षधरता ही शिक्षक धर्म है न कि क्लर्की और अधिकारियों के तलवे चाटते हुए सफलता की सीढियां गिनना।
हमारे देश की शिक्षा को क्लर्की और पराधीनता का दीमक चाट रहा है उससे मुक्ति की जल्द जरूरत है।केवल बड़बोलेपन और जेनुइन शिक्षकों विद्यार्थियों पर दमन उत्पीड़न करने से हमारी यूनिवर्सिटीज दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में नहीं आएगी।विश्वविद्यालय में बाहरी भीतरी और मान अपमान की राजनीति ज्ञानविरोधी मूल्य और प्रोपगेंडा है।हमें ऐसे दिमाग पर तरस आता है जो विश्वविद्यालय में शामिल 'विश्व' शब्द की व्याख्या में असक्षम होते हैं या जानबूझ कर इस पर ध्यान नहीं देते।यूनिवर्सिटी शब्द यूनिवर्स से बना है।वह जो अखिल ब्रह्माण्ड के ज्ञान और भाव का प्लेटफॉर्म हो।यह एक मॉडर्न धारणा है मनुस्मृति का परिनियम नहीं।
आजकल हमारे देश में विश्वविद्यालयों को जातिवाद,क्षेत्रवाद,जेंडर भेदभाव,छद्म राष्ट्रवाद और मैकालेवाद का मुफीद अड्डा बना दिया गया है।विभिन्न तरह की स्वतन्त्र बहसों विचारों और ज्ञान उत्पादन के विरुद्ध सर्टिफिकेट वितरण और सत्र निष्पादन का यांत्रिक स्थल
होने के कारण देश के ऊर्जावान दिमाग गैर उत्पादक गतिविधियों में खप जा रहे हैं।
दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि मालवीय चबूतरे के
व्यापक ज्ञान संवाद के लघु प्रयास से कुछ निजी स्वार्थ की गाजर घास की खेती करने वाले अमेरिकन दिमागों ने हमारी शैक्षिक और वैचारिक भूमिका को नज़र अंदाज करते हुए व्यक्तिगत राग अलापना शुरू किया और प्रोपगैंडा अभियान चलाया।यह सच है कि हमारी भूमिकाएं अनंत हैं लेकिन यह भी सच है कि हमारी भूमिकाओं का एक सरोकारी इतिहास है।यह स्मृति ध्वंस का समय है और
चुनी हुई स्मृतियों से अपने फायदे की राजनीति का भी।अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे कथित बुद्धिजीवी कारपोरेटी मीडिया के एजेंडे पर हर दिन सुर बदल देनेवाले बेसुरा बैंडबाजा के 'होल्डर' नहीं होते।क्या होल्डर दल को जानते हैं?जो केवल बेसुरा फूंकता हो।
एक शिक्षक का कार्य मुक्ति की शिक्षा प्रदान करना है।मालवीय चबूतरा यह संवाद जारी रखेगा।हमारा कार्य समानता स्वतन्त्रता और सृजन की किसानी करना है और हम अपने पौधों को सींचते रहेंगे।
पिछले सप्ताह दो दुःखद घटनाएं कैम्पस में घटी।पहली यह कि एक छात्रा के साथ छेड़खानी हुई।दूसरी यह कि कैम्पस में जेंडर भेदभाव के प्रश्न पर जब छात्राएं 22 और 23 सितम्बर को गांधीवादी तरीके से विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष सत्याग्रह कर रही थीं, जो उनका लोकतांत्रिक अधिकार है,तब 23 की आधी रात को जिस तरह से प्रशासन ने उनपर लाठीचार्ज किया वह बेहद गैरमानवीय,गैरलोकतंत्रिक और मालवीयजी की 'मधुर मनोहर अतीव सुंदर यह सर्व विद्या की राजधानी' के संस्थानिक मूल्य के विपरीत है। लोकतंत्र और मानवाधिकार विरोधी इस अमानवीय कार्य पर मालवीय चबूतरे ने 24 को अपनी असहमति जताई और न्याय व सुविधा संसाधन का आग्रह भी किया।
एक शिक्षक का बुनियादी धर्म है कि वे कक्षा में दिए जाने वाले ज्ञान के अनुरूप आचरण करे।सा विद्या या विमुक्तये।विद्या स्वयं और अन्य दोनों की पूर्ण मुक्ति का नाम है।आजकल यह तोतारटंत है।सत्य न्याय और ज्ञान की पूर्णता और पक्षधरता ही शिक्षक धर्म है न कि क्लर्की और अधिकारियों के तलवे चाटते हुए सफलता की सीढियां गिनना।
हमारे देश की शिक्षा को क्लर्की और पराधीनता का दीमक चाट रहा है उससे मुक्ति की जल्द जरूरत है।केवल बड़बोलेपन और जेनुइन शिक्षकों विद्यार्थियों पर दमन उत्पीड़न करने से हमारी यूनिवर्सिटीज दुनिया के 200 विश्वविद्यालयों में नहीं आएगी।विश्वविद्यालय में बाहरी भीतरी और मान अपमान की राजनीति ज्ञानविरोधी मूल्य और प्रोपगेंडा है।हमें ऐसे दिमाग पर तरस आता है जो विश्वविद्यालय में शामिल 'विश्व' शब्द की व्याख्या में असक्षम होते हैं या जानबूझ कर इस पर ध्यान नहीं देते।यूनिवर्सिटी शब्द यूनिवर्स से बना है।वह जो अखिल ब्रह्माण्ड के ज्ञान और भाव का प्लेटफॉर्म हो।यह एक मॉडर्न धारणा है मनुस्मृति का परिनियम नहीं।
आजकल हमारे देश में विश्वविद्यालयों को जातिवाद,क्षेत्रवाद,जेंडर भेदभाव,छद्म राष्ट्रवाद और मैकालेवाद का मुफीद अड्डा बना दिया गया है।विभिन्न तरह की स्वतन्त्र बहसों विचारों और ज्ञान उत्पादन के विरुद्ध सर्टिफिकेट वितरण और सत्र निष्पादन का यांत्रिक स्थल
होने के कारण देश के ऊर्जावान दिमाग गैर उत्पादक गतिविधियों में खप जा रहे हैं।
दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि मालवीय चबूतरे के
व्यापक ज्ञान संवाद के लघु प्रयास से कुछ निजी स्वार्थ की गाजर घास की खेती करने वाले अमेरिकन दिमागों ने हमारी शैक्षिक और वैचारिक भूमिका को नज़र अंदाज करते हुए व्यक्तिगत राग अलापना शुरू किया और प्रोपगैंडा अभियान चलाया।यह सच है कि हमारी भूमिकाएं अनंत हैं लेकिन यह भी सच है कि हमारी भूमिकाओं का एक सरोकारी इतिहास है।यह स्मृति ध्वंस का समय है और
चुनी हुई स्मृतियों से अपने फायदे की राजनीति का भी।अगर ऐसा नहीं होता तो हमारे कथित बुद्धिजीवी कारपोरेटी मीडिया के एजेंडे पर हर दिन सुर बदल देनेवाले बेसुरा बैंडबाजा के 'होल्डर' नहीं होते।क्या होल्डर दल को जानते हैं?जो केवल बेसुरा फूंकता हो।
एक शिक्षक का कार्य मुक्ति की शिक्षा प्रदान करना है।मालवीय चबूतरा यह संवाद जारी रखेगा।हमारा कार्य समानता स्वतन्त्रता और सृजन की किसानी करना है और हम अपने पौधों को सींचते रहेंगे।
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