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17 अक्टूबर, 2017

अस्सी के चाय घर में इज्जत घर पर बहस


का गुरू?
हाँ गुरू!
कहाँ हउअन?
नजरबंद!
देश में या विदेश में?
हुकुलगंज की जेल में।
मुचलका के देहलस?
नेशनल पांडेय।
जमानत के लिहलस?
सेकुलर तिवारी
कौने ज्वाइन करोगे?लाल सफ़ेद या नारंगी?
भार में जाए दुनिया हम बजाइब हरमुनिया।चाय पार्टी ही ठीक हौ।
---और जोर के ठहाके से पहले छत हिलती है,फिर बेंच हिलती है,फिर गिलास हिलता है,फिर चीनी हिलती है,फिर होठ हिलते हैं,फिर जुबान हिलती है।अंत में दरबे के भीतर पूरा जहान हिलता है।
       पूरे तीन साल चार महीने सोलह दिन के बाद एक होनी घटना घटित हुई।ठीक 2 अक्टूबर के दिन मैं पप्पू चाय की दूकान पर पप्पू,मनोज और डब्बी के सैकड़ों ओरहन और आदेश के बाद गांधी बाबा को सुमरिते हुए पहुंचा। उम्मीद थी कि वे भूल गए होंगे।नजारा था कि वे इंतज़ार ही कर रहे थे।उन्होंने मुझे कोरियन बम की तरह या चीनी झालर की तरह या पाकिस्तानी आतंकी की तरह या जेनयू के कन्हैया कुमार की तरह घूरा और दाएं से बाएं की ओर ईशारा करते हुए बैठ जाने का निर्देश दिया।
कहाँ थे?
बीमार था।
कौन सा रोग हुआ था।
नमोफोबिआ!
ई कोई नया रोग बा?
जाँच में कुछ नहीं आया।
तो?
डॉक्टर ने कहा-कोई पुरानी जगह और साथी को लैक कर रहे हो।फिर से पकड़ लो।
आगे?
मैंने जवाब दिया-क्या पप्पू की चाय दूकान और नेशनल पांडेय
से वाद विवाद हो सकता है?
फिर डॉक्टर ने क्या कहा?
कहा-तुम तो खुद डॉक्टर हो।अंग्रेजी के चक्कर से बचो।हिंदी वाली ही चलाओ।
-अब समझ में आइल गुरु ई दरबा के महत्व।हर जगह मुह पे ताला लागल हौ,कैम्पस के महटर केवल पीएम के क्षेत्र  डेबिट क्रेडिट एटीएम से अकेले में एकालाप करत हौ।बाकी इहै दरबा
बचल बा जेकर कोई झाँट नहीं उखाड़ पैलन।
-लेकिन इहाँ तो कीर्तनिया ही बचे हैं।
-गुरू।उधर देख।सेकुलर तिवारी आ रहे हैं।
        हाथ में छड़ी।नाक पर चश्मा।पेंट पर थ्री पीस।धीरे धीरे शनिचरी चाल।जैसे 1942 में बलिया से चले और 2017 में बनारस पहुंचे हो।नजदीक आने पर पता चला कि बनारस में घूम रहे इनदिनों मुखौटा मोदी की तरह ई कोई सेकुलर उपाध्याय हैं।नए ही जमे हैं।किसी पुराने को उखाड़कर।
-मेरा जवाब-सेकुलर तिवारी की खोज में आया हूँ।बहुत सारे मुखौटेबाज सेकुलरों की तरह प्रो सेकुलर तिवारी भी मालवीय
चबूतरे से फरार हैं।टेंस के माहौल में कैम्पस की ऑक्सीजन तक छोड़ दी है।सुना है जब से राज्य का लॉ एन्ड ऑर्डर हिंदुत्व के हाथ में गया है उन्होंने गांधी से कम्प्लीट पल्ला झाड़ लिया है।
-हाँ।जब से पता चला है कि चाय में गाय का दूध ही पड़ता है बकरी का नहीं।सेकुलर तिवारी नेशनल पांडेय से बिदक गए हैं।
       बहस से इलाज जारी है।पहली चाय गांधीवादी।दूध वाली।सबने पी।दूसरी चाय दक्षिणपंथी।निम्बूवाली।सबने पी।तीसरी चाय वामपंथी।प्योर लिकर।ढाई ने पी।अंतिम दौर में कॉफी।पूंजीवादी।एक ने पी।
        एक ज़माना था जब कहवाघर मशहूर होता होगा।उन्हें सरकारों और बुद्धिजीवियों ने बारी से खत्म कर दिया।आजकल दो ही घर देश में मशहूर हैं।निकम्मे गपोड़ियों और बकैतों का पप्पू चायघर और नमो नमो का इज्जत घर।बाकी देश का बड़ा हिस्सा तिब्बती लामा या बर्मी रोहिंग्या के हाल में पहुँचाया जा रहा है।मैं कन्फ्यूज हूँ कि यहां मैं ईलाज कराने आया हूँ या लाईलाज होने।इसे चार्वाक पर छोड़िए।

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