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09 नवंबर, 2017

धूमिल की कविता केतली में खौलती चाय है

धूमिल जन्म सप्ताह आरम्भ
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पोई की अड़ी-1
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...यादों का एलबम का पहला पन्ना खुल गया...चौड़ी छाती,घनी मूँछ,ठहाकेदार चेहरा,गुस्सैल शब्द,होठ पर पुरबा,हाथ में साइकिल,डायल टायर,सौ जगह से फटे ट्यूब की चकती,सुलेसन और लंका से खेवली तक की फटी एड़ियों सी सड़कें...
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पीपुल्स हाउस,लंका!विश्व साहित्य की किताबों की कतार।एक रैक पर रखी रूसी किताब-मैक्सिम गोर्की और प्रेमचंद।जेब में पैसे नहीं।ललचाई आँखों से एक नौजवान घन्टे पर से देख रहा है।वह कौन है? धूमिल!
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2 घन्टे तक पोई की अड़ी पर शब्द और यादें बरसते रहे।
~~~~और फिर...
मालवीय चबूतरा और अस्सी चौराहा ब्लॉग की संयुक्त पहल द्वारा आयोजित धूमिल जन्म सप्ताह का आरम्भ पोई की चाय अड़ी अस्सी पर हुआ।'चाय,कविता और लोकतंत्र' बहस श्रृंखला हजारी की अड़ी,पप्पू की अड़ी,कल्लू की अड़ी,वीरेंद्र की अड़ी,संजू की अड़ी से होते हुए लंका की टण्डन चाय अड़ी पर समाप्त होगी।
      अड़ी के अक्खड़ कवि धूमिल पर बहस शुरू करते हुए डा दीनबंधु तिवारी ने कहा कि धूमिल बनारस की चाय की केतली से पैदा हुए कवि हैं। धूमिल की कविता का पानी हमेशा खौलता रहता है।उसमें कोयला जलता है,चीनी और चाय घुलती है,होठ पर फड़फड़ाते हुए हर्फ़ फैलते हैं।
      डा आशीष पांडेय ने कहा कि धूमिल अड़ी से मुहावरे उठाते थे और हर शब्द से संसद को कठघरे में डाल देते हैं।
       पत्रकार जय नारायण ने कहा कि धूमिल की कविता में अस्सी और बनारस की बोली बानी का लोक ठनकता है।
   बीएचयू के पूर्व छात्र नेता अनिरुद्ध सिंह ने कहा कि धूमिल देहात को कंधे पर उठाए बनारस नगर के पॉलिटिकल टिपण्णीकार थे।
        प्रमोद राजर्षि ने कहा कि धूमिल की कविता के किसान से लेकर मोचीराम तक गुरुधाम की मजूर मंडी के कंकाल हो गए हैं।
      प्रो कन्हैया पांडेय ने कहा कि चायवाला देश का राजा नहीं अस्सी अड़ी का पोई ही हो सकता है।
       जन साहित्य प्रचारक प्रभुनाथ सिंह ने कहा कि धूमिल बनारस की सड़क नापने वाले संसद समीक्षक कवि थे।आजकल कमरे में बंद लेखकों को सड़क और जनता से जुड़ने का नुक्स धूमिल से लेना चाहिए।
     कार्यक्रम की अध्यक्षता धूमिल के मित्र वाचस्पति ने की और अड़ी संचालन आयोजन समन्वयक डा रामाज्ञा शशिधर ने किया।अंत में बनारस के प्रसिद्ध कथाकार मनु शर्मा को श्रद्धांजलि दी गई।

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