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10 नवंबर, 2017

मालवीय चबूतरे पर गिरिजा देवी की याद में संगीत विमर्श

आज ठुमरी की मल्लिका अप्पा जी को  बीएचयू  के मालवीय चबूतरे पर अनोखे रंग और ढंग से याद किया गया।गिरिजा देवी की याद में 'संगीत और शब्द' विषय पर आयोजित चबूतरा चर्चा में कैम्पस,नगर और देश के
संगीत रसिकों और विमर्शकारों ने हिस्सा लिया।
    सुबह 8.20 पर गिरिजा देवी के फेन जुट चुके थे।बारी बारी से संगीत प्रेमी आते गए और मालवीय चबूतरे का विमर्श कारवां बढ़ता गया।जहाँ कैम्पस भर के विभिन्न विषयों के छात्र छात्राएं संगीत विमर्श के लिए  आए वहीं स्थानिक गुरुओं के अतिरिक्त मुंबई से मनोज भावुक,देवरिया से जनार्दन सिंह तथा नगर से प्रो सत्यदेव त्रिपाठी,वाचस्पति और आशीष पांडेय को संगीत विमर्श खींच लाया।
     
          संगीत परिचर्चा की अध्यक्षता वाचस्पति ने की तथा परिचर्चा संचालन चबूतरा संस्थापक डा रामाज्ञा शशिधर ने किया।
        बनारस घराने की शान और पूरब अंग की गायकी की पहचान गिरिजा देवी के गायन का गंभीर विश्लेषण
करते हुए संगीत समीक्षक डा आशीष पांडेय ने कहा कि
गिरिजा देवी ने ठुमरी को श्रृंगार और मनुहार से निकालकर विश्व भर में रूहानी दर्जा दिलाया।संगीत जगत में गिरिजा देवी संगीत का पर्याय हैं।गिरिजा देवी ने काशी की गलियों की क्रियोल भाषा में ठुमरी के बोल दिए वहीँ आम जीवन से लोकधुनों को चुनकर उन्हें राग
के रथ पर सवार किया।गिरिजा देवी ने ठुमरी को रागों का गुलदस्ता बना दिया।गिरिजा देवी के कंठ में अनूठी मिठास और खनक के मेल ने साहित्यिक अन्योक्ति के सहारे ठुमरी को अभूतपूर्व ऊंचाई दी।
      नाट्य समीक्षक प्रो सत्यदेव त्रिपाठी ने कहा कि गिरिजा देवी ने ठुमरी में प्रेम,स्वप्न और भक्ति की ऐसी
त्रिवेणी बहाई जिसका दीवाना सदियों तक ज़माना रहेगा।गीतकार मनोज भावुक ने कहा कि गिरिजा देवी पूरबिया सेमिक्लासिकल की जड़ हैं जिनके बिना संगीत की नई पीढ़ी प्लास्टिक का फूल साबित होगी।भोजपुरी अध्ययन केंद्र के समन्वयक प्रो श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि गिरिजा देवी में संगीतकार के भीतर
गुरू शिष्य परंपरा का एक आदर्श शिक्षक था।उन्होंने ठुमरी को भोजपुरी गीतों की अश्लीलता के बरक्स अध्यात्म का मार्ग दिया।जनार्दन सिंह ने कहा कि भोजपुरी की हाइटेक और अश्लील संगीत पीढ़ी को गिरिजा देवी से सच्चे संगीत और लोक की नई नई प्रयोगशीलता सीखनी चाहिए।
       अरुण तिवारी ने कहा कि जिस समाज में संगीत का विकास होता है वह संवेदनशील और लोकतांत्रिक
समाज बनता है।एथेंस से भारत तक इसके उदाहरण हैं।नेहा ने कहा कि गिरिजा देवी ने गुलाम देश में सामंती
परिवार से बाहर निकलकर स्त्री मुक्ति
की राह दिखाई।सम्भवतः गिरिजा देवी संकट मोचन के संगीत मंच पर क्लासिकल गायन करने वाली प्रथम स्त्री
कलाकार थी।पंकज कुमार ने कहा कि गिरिजा देवी चलती फिरती संगीत सभा थी।वे जितनी बड़ी गायिका थीं उससे बड़ी सम्बंधजीवी बनारसी संस्कृति थी।
      

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