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13 नवंबर, 2017

खांसी वाली हिंदी बनाम काशीवाली हिंदी

::तुम खांसीवाली हिंदी,हम काशीवाली हिंदी!::
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5वां दिन:हिंदी अड़ी अस्सी पर धूमिल(और मुक्तिबोध भी?)
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हिंदी अड़ी पर  हमने मुक्तिबोध की अँधेरे में और धूमिल की पटकथा पर लंबी बहस क्यों की?इसलिए कि देश  की तरह मुक्तिबोध और धूमिल की कविता में भी काफी अँधेरा है।
        तुलसी से लेकर धूमिल तक को भाषा और लोक का आधार देने वाली यह अस्सी की हिंदी अड़ी है !आप पूछिए यह हिंदी अड़ी क्यों है और सर्वविद्या की राजधानी का मुझ जैसा मास्टर यहाँ का चायेड़ी क्यों है?
       आप उत्तर कबीर से  उत्तर लीजिए कि यह चाय वाला कोई नकली साक्षर चायवाला भाषणबाज नहीं बल्कि चालीस पार का शख्स हिंदी आंदोलन वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग का पास आउट पुरातन छात्र है।
       जी हाँ।खानदानी गोल्ड मेडल और नौकरी लुटाने वाले हिंदी के अंतरराष्ट्रीय सरदार प्रो विजयपाल सिंह के विभाग का बेरोजगार नौजवान वीरेंद्र सरदार।
      कहते हैं हिंदी डिग्रीधारी वीरेंद्र सरदार-गुरूजी।जब काशीनाथ सिंह के चेले ही नालायक निकल गए तो मेरी क्या औकात! देखिए डा गया सिंह के भाई डा गिरिधर सिंह को!हिंदी विभाग से पीएचडी करने के बाद बेरोजगारी का ऐसा सदमा लगा कि ये हिन्दीदाँ साहब या तो पेड़ पर घोंसला बनाकर साधना करते हैं या हरश्चंद्र घाट पर आत्मा बैंक का बही खाता चलाते हुए प्रबन्धक की नौकरी करते हैं।
      मानना है हिंदी सरदार का कि अस्सी से काशीनाथ और चौथीराम मुंह छुपाकर इसलिए नहीं भागे कि अड़ी उनके लायक नहीं रही थी बल्कि इसलिए गुजर गए कि वे हिंदी के सदाबहार छात्र वीरेंद्र को चाय बेचते देखकर ग्लानि और अपराध से भर उठते थे।
     गुरूजी!मैं जब क्लास में जाता था तो तब काठ वाली कुर्सी होती थी।क्लास में गुरूजी लोग नाऊ अधिक दिखते  और पंडित कम।पता नहींक्यों उन्हें चेले के दिमाग से ज्यादा जुल्फ सजी खोपड़ी से  प्यार था! मैं हिंदी की क्लास करने से ज्यादा पहलवानी करने लगा।मैंने हिंदी विभाग को पहलवानी में डिस्ट्रिक्ट और प्रोविन्स लेवल के कई गोल्ड मेडल दिलाए और हिंदी का नाम रोशन किया।    
       गुरूजी!दुःख क्या उघारूं!ये प्रो काशीनाथ मेरे लिए काशी ही साबित हुए और चौथीराम तो मेरे लिए  चौथी ही रहे।जिस हिंदी विभाग में   नकली गोल्ड मेडल को सैलुनिया सिंहासन प्राप्त है वहां के कुर्सी वाले विद्वान् मेरे जैसे ऑरिजिनल गोल्ड मेडिलिस्ट हिंदी पहलवान को क्यों पूछें।
       गुरूजी!जातिवाद और स्वार्थ का साँढ़ हिंदी के खेत को ऐसा चर गया कि वहां खूँटी ही खूँटी बची है।पानी दीजिए पर तलवा बचाकर।
             कहना है हिंदी अड़ी के चायवाला वीरेंद्र सरदार का कि अब के
लड़के पीएचडी कर रहे हैं और धृतराष्ट्र का उच्चारण नहीं लिख सकते।
            "मैं तो विद्योत्तमा नामक प्रोफेसरनी का चेला हूँ जो एकमात्र क्लासमुखी विदुषी थी।आज के लौंडे अस्सी के महान हिंदी डिग्रीधारी बेेरोजगार  सुश्रुत आचार्य से मिल लें तो उनकी हिंदी का इलाज स्वतः
हो जाएगा।"
          "परिसर की मरियल हिंदी है और अस्सी की हिंदी अड़ियल हिंदी।"
         गुरूजी!आज भी मैं तुलसी का नाम लेकर कोयला जलाता हूँ और धूमिल का नाम लेकर चूल्हा ठंढाता हूँ।बीच में कबीर रैदास कीनाराम भारतेंदु प्रसाद त्रिलोचन काशीनाथ गया सिंह आते जाते रहते हैं।
           गुरूजी!आज आपने धूमिल को यादकर इसलिए अच्छा किया कि काशी के नक्शे पर पहले गाय दूध  फैलाती थी और आजकल गोबर लीपती है।
          गुरूजी!नहीं समझे?गोष्ठीबाज हैं न!मने कि पहले मसक में दूध भरकर नाली धोई जाती थी और आजकल मुखमसक
में शब्द और पीक भरकर।
          गुरूजी...हिंदी सरदार सुनाते रहे!सुनाते रहते हैं।।   
        जानिए!अड़ी पर मंच माला स्वागत चादर आदर फादर गिव एंड टेक बटर शटर की कोई गुंजाइश नहीं।यहां सत्तर साल पुराना गटर है। गटर के ऊपर तीस साल पुरानी सड़क है।,सड़क के ऊपर दो करोड़ साल पुराना लौह चूल्हा है।चूल्हे में पचास लाख साल पुराना कोयला है।कोयले में सूर्य इतनी पुरानी आग है।आग पर अंग्रेजीराज इतनी पुरानी चाय पत्ती है।उसपर मुगल सम्राट अकबर की दान दी हुई एक केतली है।...और उस केतली से खेलती हुई खड़ी बोली हिंदी इतने ही पुराने हिंदी चायवाले वीरेंद्र सरदार की उँगलियाँ हैं।
         चाय खौलती रहती है,शब्द पककर झरते रहते हैं।
        यहां अडीबाज नहीं बोलते हैं ।वे मिट्टी के पुरबे में चाय लिये मिट्टी की मूरत सरीखे सुनते रहते हैं।बोलता है सिर्फ हिंदी का सरदार।अस्सी अड़ियों का हाइएस्ट क्वालिफाइड चायवाला।
         कहना है हिंदी सरदार का कि गुरूजी!जितने देसी विदेसी को आप लोगों ने लाख टका तनख्वाह लेकर हिंदी नहीं सिखाई होगी उससे दस गुना ज्यादा तो मैंने फ्री जोन हिंदी फैला दी।वीरेंद्र सरदार के हिंदी सीखे चेले दुनिया के हर कंट्री में हैं।चाहे जापान हो कि उज़्बेकिस्तान।हिंदी सरदार के यहां विदेशी लाइन में खड़े होकर चायेड़ी हिंदी सीखते हैं।
       हिंदी अड़ी पर मेरा जापानी चेला मानस चाय पीने कम हिंदी सीखने ज्यादा जाता है।
         वीरेंद्र सरदार खांसी वाली हिंदी नहीं,काशी वाली हिंदी सिखाते हैं...भोंसरो के अमीर खुसरो के...का रजा मजा बा..का गुरु शुरू हौ..
        यह हिंदी अड़ी है,समीक्षा अड़ी है,गाउल अड़ी है,यह फाउल अड़ी है,रोमांस अड़ी है,यह कत्थक डांस अड़ी है,यह नेमी अड़ी है,यह प्रेमी अड़ी है,यह फोसला अड़ी है,यह घोंसला अड़ी है,धुनिया अड़ी है,हरमुनिया अड़ी है,यह अचल अड़ी है,यह सचल अड़ी है,यह बाप अड़ी है बेटा अड़ी है।कहते हैं प्राइमरी शिक्षक हिन्दीदाँ डा आशीष पांडेय कि जब से काशी से पेड़ गायब होकर एक जगह केंद्रित हो गए हैं तबसे हर अड़ी इंटेलेक्चुअल से महरूम एजेंट के साथ खड़ी है।
     "नहीं समझे।समझेगें भी नहीं आप।ऐसा इसलिए कि ये इंटेलेक्चुअल नामक जीव यूनिभरसिटी में पाये जाते हैं।"
      कहना है ह्मबोट गुरु का...।
       ह्मबोट का मतलब?...
      फिर नहीं समझे आप...
          एक बोतल सीरप खरीदिए...काशी की दक्षिण दिशा में कॅफेश्वर महादेव का पिंडा है...उन्हें तन मन धन से साधना कर उस पर बूँद बूँद गिराइए...हिंदी का ऐसा विद्वान् बनेंगे कि गणेश और सरस्वती आपके मुंशी हो जाएंगे...
        अब मुक्तिबोध और धूमिल पर अड़ी की बहस शुरू होती है..सुनाइए एसएस तिवारी जी।विचार प्रगट कीजिए कन्हैया पांडेय जी।
      अभिव्यक्त कीजिए शुक्ला जी मिस्र जी अध्याय जी उपाध्याय जी पांडेय जी शर्मा जी द्विवेदी जी दूबे जी त्रिवेदी जी त्रिपाठी जी तिवारी जी चतुर्वेदी जी चौबे पंजे जी छब्बे जी छक्के जी सत्ते जी सट्टे जी अठे जी....
      "मैं सुन रहा हूँ वीरेंदर सरदार
       हिंदी का गोल्ड मेडलिस्ट बेरोजगार!"

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